एक साहित्यकार की कहानी
जिंदल साहब ढेड सौ रूपये किलो, जिंदल साहब ढेड सौ रूपये किलो। देहरादून राजपुरा रोड पर टहल रहा था मै, तो साईड रोड से आवाजे आ रही थी, जिंदल साहब ढेड सौ रूपये किलो। उत्सुकता हुई जाकर देखा जाए। पास जाकर देखा तो एक नौजवान 200-300 किताबें जमीन पर रख कर आवाजे लगा रहा था, जिंदल साहब........! मैने पास जाकर पूछा कि भाई भैंसा भी तीन सौ रूपये किलो बिक रहा है और तू कौन से जिंदल साहब को ढेड सौ रूपये किलो बेच रहा है। वो मुझे पहचान गया क्योंकि मेरे नावलो के पीछे छोटा सा मेरा फोटो भी था। बडी इज्जत दी उसने मुझे। चार ईंटे लगाकर बैठा हुआ था वो, तुरंत अपने नीचे से दो ईंटे निकाली और बडे प्यार से मुझे बैठाया। जोर से आवाज दी शंकर एक बडिया सी चाय लाऔ जिंदल साहब आए है। वो ही जिंदल साहब जिनकी किताबे तू मेरी फड से उठा कर पढता है पर खरीदता नही। मेरे मन को तसल्ली हुई कि चलो एक चाय वाला तो मेरी किताबे पढता है, कल को कुछ बन गया तो पदम्श्री तो मिल ही जाएगा अपन को। चाय आई, शंकर ने पैर छूकर अभिनंदन किया और अपने पास से पांच रूपये वाला बिस्कुट का पैकेट भी दे गया। एक साहित्यकार के लिए गरीब का बिस्कुट का पैकेट पदम्श्री स...