परंपराओं को बचाकर रखे हैं भौली गांव वासी

 


माटी माता को जगाने के लिए कोनों में लगाई जाती है आग: डॉ सत्येंद्र 



पूरे गांव में 6 जगह पर डाली जाती हैं हैं अलाय-बलाय।



बक्शी का तालाब 31 अक्टूबर।

विधि- विधान और परंपराओं का निर्वहन करते हुए नगर पंचायत बक्शी का तालाब के भौली गांव में दीप उत्सव आज भी धूमधाम से मनाया जाता है। दीप उत्सव की शुरुआत सबसे पहले गांव के सभी किसान अपने खेतों के कोनो को सूखी घास से जागने / जलाने जाते हैं और कहते हैं "कोन राजा जागते रहो" ऐसी परंपरा है कहा जाता है कि यदि कोन को जगा दिया जाता है तो आटी माता खु़श हो जाती हैं और उसमें उत्पादन अच्छा होता है रवी की फैसले बहुत अच्छे से उगती हैं और उत्पादन अच्छा होता है।


डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि गांव की आबादी लगभग 20000 होने के बावजूद भी यहां पर एक ही समय लगभग 6:30 शाम को गोधूल के बाद अलाय- बलाय निकली जाती है। गांव के बुजुर्ग संत भगत सिंह और महेश सिंह व सूबेदार सिंह ने बताया कि यह परंपरा बहुत पुरानी है और हम लोग गोधूल के बाद अलैया- बलैया निकलते हैं और  और परंपरा अनुसार जिनके घर में पशु होते हैं वहा घूर ( इकट्ठा गोबर की खाद)  उनकी पूजा अर्चना के बाद उन्हें जगाने की प्रथा भी प्रचलित है। परिवार के सदस्य लाठीं लेकर गोबर के ढेर अथवा घूर को डंडे से आज भी जागते हैंउसके बाद अपने ग्राम देवता बिजली बाबा की पूजा अर्चना करने घर का एक सदस्य अवश्य जाता  है जहां पर खोया और चीनी से बनी हुई मिठाई आज भी वहां  चढ़ाई जाती है और जिन घरों में प्रथम बालक जन्म लेता है उनके नाम से आज भी यहां पर बलि चढ़ाई जाती है बलि के रूप में बकरे का वध किया जाता है परंपराओं में परिवर्तन किया गया है अब बकरों के कान का कुछ भाग चढ़ा दिया जाता है उसके बाद प्रसाद के रूप में इसे घरों में जो अपने परिवार के घर हैं अपने कुल के घर हैं उनमें बांटा जाता है।



 इसी तरह से गांव में लगभग छह जगहों पर अलाय -बलाय डाली जाती है।  कृषि विशेषज्ञ एवं गांव के ही निवासी डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह बताते हैं कि गांव बहुत बड़ा होने के कारण निरंतर जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है गांव दो तरफ से नेशनल हाईवे से घिरा हुआ है पूरब दिशा में लखनऊ- सीतापुर नेशनल हाईवे है और पश्चिम दिशा में किसान पथ है गांव  पिछले 5 सालों में बहुत ज्यादा विस्तारित हो गया  है। यहां पर नई बस्तियां निरंतर बढ़ती चली जा रही हैं और इस दबाव के कारण कम से कम 6 से 7 जगह पर अलाय बलाय डाली जाती है गांव में सदैव ही खुशहाली का माहौल रहता है उन्होंने बताया कि यहां पर किसी भी तरह का कोई भी दंगा फसाद नहीं होता हिंदू और मुस्लिम साथ मिलकर के दीपावली के पर्व का  साथ मनाते हैं डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने कहने लगे कि हमारे मुस्लिम भाई भी सुबह पूडी मिठाई का प्रसाद लेने घर अवश्य आते हैं ऐसी परंपरा है। इसी वार्ड में लगभग 600 वर्ष पुराना श्री राधा कृष्ण मंदिर है जहां पर प्रति वर्ष दीपावली के दिन हजारों लोग दीपदान करने आते हैं साथ ही में गांव में कई छोटे बड़े मंदिर हैं जहां पर दीपावली के दिन बहुत ही हलचल रहती है। गांव के निवासी एवं अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह चौहान ने बताया कि शाम 6:00 बजे हम लोग सभी कार्य से मुक्त होकर अलाय बलाय लेकर निर्धारित स्थान पर पहुंचते हैं और वहां पर समय देते हैं जिससे लोग इस परंपरा को और आगे बढ़ा सके और सभी लोग विधि डालते हैं। पूर्व प्रधान राम बहादुर सिंह चौहान ने बताया कि आज भी हमारे यहां परंपराओं को बनाए रखा गया है और बहुत ही शांति ढंग से दीप उत्सव संपन्न होता है। गांव के ही पूर्वज जो हम लोगों के बीच में नहीं रहे उन्हीं के पुत्र ओमप्रकाश सिंह की अंतिम समय जब सभी गांव के लोग अलाय बलाय लेकर के एक स्थान पर डालते हैं तो सभी देवी देवताओं का जोर से जयकारा लगाया जाता है और सभी को जोहार तथा राम-राम कह जाता है ऐसी परंपरा है ।


लगभग 300 से अधिक घर के लोग एक जगह पर अलाय बलाय डालते हैं।

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